भ्रमित चिंतित हो या विचलित,
ज़िन्दगी के इस डगर पे,
चलना ही होगा ए मुसाफिर
धूल मिट्टी और कंकड़,
राह में कांटे भी होंगे,
चाहे हस के चाहे रो के,
सहना ही होगा ए मुसाफिर
मीत प्रीत और उपवन,
राह में मुस्कानें भी होंगी,
दो घड़ी आराम करके,
उठना ही होगा ए मुसाफिर
हार जीत और यादे,
राह में पीड़ा भी होगी,
वेदना में लिप्त हो या,
धैर्यता से मुस्कुरा के,
बढ़ना ही होगा ए मुसाफिर
जाड,ग्रीष्म और वसंत,
राह में सावन भी होगा,
बरखा कि कभी बूंद होंगी,
मरुथल कि कभी रेत होगी,
मंजिल कभी पास होगी,
कभी, मंजिल कि बस प्यास होगी,
आश से मन जब भरा हो,
साँस तन में हो धड़कती,
नापने आकाश कितने,
तू अगर जो रुक गया तो,
रह जायेंगे, कितने सपने अधूरे,
चाहे दो पल छाँव में,
नैनो को तू विश्राम दे ले,
फिर तुझे उन्मक्त मन से,
छितिज़ को
छूना ही होगा,ए मुसाफिर।
यह तुम्हारी पुरानी गठरी से है या ताज़ा सृजन है. खैर जो भी है, बहुत मन भाया.
ReplyDeletepurana hi hai bhaiya :)
ReplyDeleteoh.. the struggle and strength of mind portrayed in this..
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