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Showing posts from 2009

मेरे बिना

मेरे बिना सूरज आता है क्या अब भी धुप,क्या अब भी छनके आती है खिडकी से गुदगुदा कर उठाती थी जो मुझे कराने जिन्दगी का एहसास मुझे ना पाकर वहां,क्या लौट जाती है दबे पाँव मेरे बिना चाँद आता है क्या छत पर अब भी चुपके-चुपके आता था जो हर रात डालकर चाँदनी अपनीभर देता था,आखें सपनो से बिस्तर खाली देखकर मेरासमेट लेता है क्या चाँदनी अपनी मेरे बिना माँ क्या फैलाती है अपना आँचल बैठ जिसके तले,भुलता था सारी दुनिया को वन्दना करके जिसकी ,ना डर था नास्तिक होने का गोद मे ना पाकर मुझे निहारती है क्या अपना आँचल सुनी आखों से याकि मिटा दिया सबने मुझे,अपनी यादों से खो गये सब अपने-अपने कामो मे सूरज उगने और दुबने मे चाँद आने और जाने मे माँ दुनियादारी मे है विश्वास मुझे कभी-कभार हीं सही धुप होती होगी उदास चाँद होता होगा निराशबिसुरती होगी माँ मेरे बिना I wrote this poem long back,and its going to published in a poem magzine called "Anmol Sangrah" very soon

Hi all

Hi all, I would like to start my Blog with some of the lines of a poem written by Dr. Harivansh Rai Bachchan which I am fond of.. इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!