अन्धेरे मे खुद को, कोइ सम्भल्ता नही है, हवा खुद ही आती है, कोइ लाता नही है, आसमा मे चमकती, बिजली असहाय है, कड़क के गिरती है, कोई सम्भालता नहीं है, दुनिया के हर रूप से, उठ चुका है यकीं आज, आज तो इंसान को खुद पे भी यकीं आता नहीं है, जहर हाथों मे है, पर कायर मर पाता नहीं है, जिंदगी से है नफ़रत, मौत से यारी कर पाता नहीं है | ~अभि